कलचुरी वंश का परिचय
कलचुरी वंश का उदय 12वीं से 14वीं शताब्दी ईस्वी में छत्तीसगढ़ क्षेत्र में हुआ। इस वंश ने यहां दीर्घकाल तक शासन किया और छत्तीसगढ़ के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। रतनपुर, जो कि कलचुरी वंश की राजधानी थी, ने इस समय में सांस्कृतिक और स्थापत्य विकास के मामले में असाधारण प्रगति की।
महत्वपूर्ण राजा: जाज्वल्यदेव
राजा जाज्वल्यदेव को कलचुरी वंश के सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली शासकों में माना जाता है। उन्होंने रतनपुर में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया और इसे एक प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जाज्वल्यदेव के शासन काल में कलचुरी वंश ने न केवल धार्मिक स्थलों का निर्माण किया, बल्कि कला और स्थापत्य के विकास को भी प्रोत्साहित किया।
महत्वपूर्ण स्थापत्य और सांस्कृतिक क्षेत्र
इस काल में कई महत्वपूर्ण स्थापत्य रचनाएँ हुईं, जिनमें रतनपुर का महामाया मंदिर और मल्हार के प्राचीन मंदिर शामिल हैं। ये मंदिर कलचुरी वंश के शिल्प कौशल और वास्तुकला की उत्कृष्टता के प्रतीक हैं। विशेष रूप से, रतनपुर का महामाया मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना, जहां सांस्कृतिक उद्भव और कला के विकास को बढ़ावा मिला।