
छत्तीसगढ़ अपनी समृद्ध जनजातीय संस्कृति और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। इनमें से एक अनूठी परंपरा है गोदना (Tattooing)। राज्य की जनजातियाँ जैसे गोंड, बैगा, उरांव, हल्बा आदि गोदना को अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में अपनाती हैं। गोदना में उपयोग किए जाने वाले रंग प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त किए जाते हैं, जिसमें काले रंग के लिए विशेष वृक्षों की भूमिका होती है।
गोदना के लिए काले रंग का स्रोत:
छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ गोदना के लिए सेमल (Bombax ceiba) और अर्जुन (Terminalia arjuna) वृक्ष की छाल का उपयोग करती हैं। इन पेड़ों की छाल और अन्य सामग्रियों के संयोजन से काला रंग तैयार किया जाता है।
1. सेमल (Bombax ceiba) वृक्ष:
- सेमल की छाल जलाने पर उससे एक काले रंग का चारकोल जैसा पाउडर प्राप्त होता है।
- इस चारकोल को पानी और तेल के साथ मिलाकर गोदना के लिए रंग तैयार किया जाता है।
2. अर्जुन (Terminalia arjuna) वृक्ष:
- अर्जुन की छाल को भी काला रंग प्राप्त करने के लिए जलाया जाता है।
- इसके अलावा अर्जुन छाल में एंटीसेप्टिक गुण भी होते हैं जो त्वचा संक्रमण से बचाव करते हैं।
गोदना प्रक्रिया में अन्य सामग्री:
गोदना प्रक्रिया में केवल काले रंग ही नहीं बल्कि अन्य सामग्री भी शामिल होती है:\n- महुआ तेल: रंग को चिकना और त्वचा पर टिकाऊ बनाने के लिए।
- बांस की सुई: त्वचा में गोदना डिजाइन बनाने के लिए।
- चारकोल पाउडर: रंग के रूप में उपयोग।
गोदना का सांस्कृतिक महत्व:
- छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ गोदना को सामाजिक पहचान के रूप में देखती हैं।
- महिलाओं के हाथ, पैरों और माथे पर गोदना सुंदरता का प्रतीक माना जाता है।
- कुछ जनजातियों के लिए गोदना धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी रखता है।
- यह विवाह, त्यौहार और सांस्कृतिक अवसरों पर किया जाता है।
स्वास्थ्य संबंधी सावधानियाँ:
प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करने के बावजूद सही प्रक्रिया और स्वच्छ उपकरणों का उपयोग महत्वपूर्ण है। आधुनिक समय में गोदना कला में कई परिवर्तन आ गए हैं, लेकिन जनजातीय परंपराओं में अब भी प्राकृतिक तरीकों का ही महत्व है।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ की जनजातियों द्वारा गोदना के लिए काला रंग मुख्य रूप से सेमल और अर्जुन वृक्ष से प्राप्त किया जाता है। इन प्राकृतिक सामग्रियों का उपयोग जनजातीय जीवन में पारंपरिक ज्ञान और प्रकृति के प्रति सम्मान को दर्शाता है। यदि आप इस विषय पर और गहराई से जानना चाहते हैं या छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति में रुचि रखते हैं, तो इस पर टिप्पणी जरूर करें।