छत्तीसगढ़ में ताम्रपाषाण युग: एक ऐतिहासिक अध्ययन

ताम्रपाषाण युग का परिचय

छत्तीसगढ़ में ताम्रपाषाण युग का समय वह था जब तांबे के औजारों का उपयोग बढ़ने लगा। यह युग मानव सभ्यता के विकास में एक महत्वपूर्ण चरण का प्रतिनिधित्व करता है। यह वह समय था जब लोग न केवल अपने परिवेश से सामंजस्य बैठाने लगे थे, बल्कि उन्होंने कृषि और पशुपालन जैसे कार्यों में भी महारत हासिल की।

छत्तीसगढ़ का पुरातात्विक महत्व

बलौदाबाजार और दुर्ग क्षेत्र में इस युग के कई महत्वपूर्ण साक्ष्य मिले हैं। यहाँ पाए गए तांबे के औजार और अन्य वस्तुएं, इस बात का प्रमाण हैं कि इन क्षेत्रों में ताम्रपाषाण युग के लोग नियमित रूप से आहार, वस्त्र, और औजार बनाने में लगे हुए थे। इन साक्ष्यों से हमें उस समय के जीवन और संस्कृति को समझने में मदद मिलती है।

जीविका और संस्कृति

इस युग में लोग कृषि, पशुपालन, शिकार और बुनाई का कार्य करने लगे थे। यह गतिविधियाँ न केवल उनकी जीविका का साधन थीं, बल्कि ये समाज की सांस्कृतिक विकास में भी योगदान देती थीं। लोग अब स्थायी निवास बनाने लगे थे और समुदायों का निर्माण कर सकते थे, जिससे सामाजिक संरचनाओं का विकास संभव हो सका।

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