पांडुवंशी वंश का इतिहास: दक्षिण कौशल पर एक नजर

पांडुवंशी वंश का परिचय

पांडुवंशी वंश, जो सातवीं से दसवीं शताब्दी ईस्वी के मध्य अस्तित्व में था, दक्षिण कौशल में एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरा। इस वंश के शासकों ने सिरपुर को अपनी राजधानी बनाकर वहाँ अपनी प्रशासनिक और सामरिक शक्ति को स्थापित किया। पांडुवंशी शासकों का शासनकाल दक्षिण भारत के लिए एक महत्वपूर्ण युग था, जिसने यहाँ पर ब्राह्मण धर्म के प्रभाव को बढ़ाया।

सिरपुर: राजधानी का महत्व

सिरपुर, जो पांडुवंशी वंश की राजधानी थी, इसके सांस्कृतिक और आर्थिक विकास का मुख्य केंद्र था। यहाँ कई मंदिरों का निर्माण हुआ, जो उस समय की धार्मिक आस्थाओं को दर्शाते हैं। इस शहर ने विभिन्न कला और साहित्य के क्षेत्रों में भी योगदान दिया, जो इस वंश की महानता को प्रदर्शित करता है। शहर के आचार-व्यवहार में ब्राह्मण धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

ब्राह्मण धर्म का प्रभाव

पांडुवंशी वंश के शासन में ब्राह्मण धर्म का प्रभाव और भी विस्तृत हुआ। इस धर्म ने सामाजिक संरचना को प्रभावित किया और लोगों के बीच धार्मिक एकता को बढ़ावा दिया। शासकों ने ब्राह्मणों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया, जिससे धार्मिक गतिविधियों में प्रगति हुई। इस काल में कला, वास्तुकला और साहित्य का भी समृद्धि से विकास हुआ।

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