
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति भारत का प्रमुख त्योहार है, जो हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिन सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है और शीत ऋतु के अंत तथा बसंत ऋतु की शुरुआत का संकेत देता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का वध किया और सूर्य शनिदेव से मिलने गए।विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति का उत्सव
भारत के प्रत्येक क्षेत्र में मकर संक्रांति को मनाने के तरीके भिन्न होते हैं। उत्तर भारत में खासकर खिचड़ी का दान किया जाता है, जबकि पंजाब में लोग लोहड़ी का जश्न मनाते हैं। महाराष्ट्र में तिल-गुड़ का आदान-प्रदान किया जाता है, और गुजरात में पतंगबाजी मुख्य आकर्षण होती है। ये सभी उत्सव न केवल कृषि संस्कृति से जुड़े हैं, बल्कि भाईचारे और एक नई शुरुआत का प्रतीक भी हैं।विशेष संध्या और दान
इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। लोग अपने घरों को साफ करके, नए कपड़े पहनकर और मीठे व्यंजन बनाकर उत्सव का स्वागत करते हैं। कृषक अपने फसलों की कटाई का जश्न मनाते हैं और यह उन्हें समर्पण तथा कड़ी मेहनत की याद दिलाता है। मकर संक्रांति हर किसी के लिए एक नई शुरुआत और खुशियों का संदेश लेकर आता है।
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Makar Sankranti
मकर संक्रांति हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाई जाती है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और दिन की लंबाई बढ़ने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने जाते हैं, और इसे शुभ अवसर माना जाता है।
इस दिन तिल, गुड़, कंबल, अन्न और वस्त्र दान करने का विशेष महत्व है।
उत्तर भारत: खिचड़ी, पंजाब: लोहड़ी, तमिलनाडु: पोंगल, गुजरात और राजस्थान: उत्तरायणी (पतंग उत्सव)
यह पर्व शीत ऋतु के अंत और बसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। इस समय से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
तिल-गुड़ शरीर को गर्म रखने में सहायक होते हैं और सर्दी से बचाव करते हैं। साथ ही, इसे मीठा बोलने का प्रतीक माना जाता है।
भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे पोंगल, लोहड़ी, उत्तरायणी और माघ बिहू के नाम से जाना जाता है।
माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
मकर संक्रांति उत्तर भारत में मनाया जाता है, जबकि पोंगल दक्षिण भारत (तमिलनाडु) में फसल कटाई के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
यह दिन खुशियों और नई शुरुआत का प्रतीक है। पतंग उड़ाना उत्सव का हिस्सा बन गया है, खासकर गुजरात और राजस्थान में।
मुख्य रूप से तिल के लड्डू, गजक, रेवड़ी और खिचड़ी बनाई जाती है।
मकर संक्रांति बच्चों को प्रकृति के साथ जुड़ने, दान करने और नई शुरुआत का महत्व सिखाता है।
खिचड़ी सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक मानी जाती है।
सूर्य को अर्घ्य देने के लिए तांबे के लोटे में जल, गुड़, चावल और लाल फूल डालकर उगते सूर्य को अर्पित करें।
यह पर्व सर्दियों के समाप्त होने और गर्मी के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है।
यह दिन सूर्य के उत्तरायण होने का प्रतीक है, यानी सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर गति करता है।
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश की सटीक खगोलीय स्थिति के आधार पर तारीख तय होती है।
इस समय सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ता है, इसलिए इसे उत्तरायण भी कहते हैं।
यह पर्व समाज में एकता, भाईचारे, दान और सौहार्द का संदेश देता है।
यह त्योहार फसल कटाई के समय मनाया जाता है, इसलिए किसान अपनी मेहनत का फल पाकर प्रकृति को धन्यवाद देते हैं।
कुछ स्थानों पर इसे एक दिन (14 या 15 जनवरी) तक मनाया जाता है, जबकि तमिलनाडु में पोंगल चार दिन तक चलता है।
सुबह से लेकर सूर्यास्त तक पतंगबाजी की जाती है।
पंजाब में लोहड़ी के गीत, जबकि उत्तर भारत में पारंपरिक लोकगीत गाए जाते हैं।
इस दिन स्नान, सूर्य पूजा, खिचड़ी और तिल-गुड़ से बने व्यंजन तैयार किए जाते हैं।